Financial Resolution and Deposit Insurance Bill, 2017
Source : NDTV
यह बिल इसलिए लाया गया है ताकि बैंकिंग सेक्टर की मॉनिटरिंग के लिए एक रेज़ोल्यूशन कॉरपोरेशन बनाया जा सके.
Published : December 07, 2017 21:18 IST
बच्चों के पास पीने का पानी नहीं है, टीवी और राजनीति की हिन्दू मुस्लिम की डिबेट आम लोगों को मानव बम में बदल रही है!
PMC बैंक (PUNJAB & MAHARASHTRA CO-OPERATIVE BANK LTD) घोटाले के बाद महाराष्ट्र में ही एक और बड़े घोटाले के सामने आने का अंदेशा लगाया जा रहा है. दरअसल मुंबई का एक जूलरी स्टोर ( गुडविन ग्रुप ने जूलरी, कंस्ट्रक्शन, सिक्यॉरिटी डिवाइसेज तथा आयात-निर्देश में निवेश कर रखा है.) जिसकी कई ब्रांच हैं उसका मालिक पिछले चार दिनों से अपनी दुकानें बंद कर फरार हैं।
इस तरह के मामले उपभोक्ताओं एवं निवेशकों को यह सोंचने के लिए मजबूर कर दिया है कि - उनका धनराशि,निवेश की हुई संपत्ति क्या वाकई सुरक्षित है ????????
बैंकों में जमा आपके पैसे की बात करते हैं. 10 अगस्त 2017 में लोकसभा में पेश हुए फाइनेंशियल रेज़्यूलेशन एंड डिपोज़िट इंन्श्योरेंस बिल को लेकर चर्चा हो रही है. 18 अगस्त को यह बिल लोकसभा की संयुक्त संसदीय समिति के पास भेज दी गई, इस समिति ने अपनी अंतिम रिपोर्ट पेश नहीं की है मगर इसके कुछ प्रावधानों को लेकर मीडिया में चर्चा है कि बैंकों में जमा आपका पैसा सुरक्षित नहीं है. अब बैंक चाहें तो देने से मना कर सकते हैं. यह बिल इसलिए लाया गया है ताकि बैंकिंग सेक्टर की मॉनिटरिंग के लिए एक रेज़ोल्यूशन कॉरपोरेशन बनाया जा सके. यह निगम डूबते हुए बैंक के खाताधारखों के पैसे की बीमा का मापदंड भी तय करेगा. अख़बारों और न्यूज़ वेबसाइट पर आपने इस तरह की हेडलाइन देखी होगी.
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क्या वाकई ऐसा होने जा रहा है, बिल में तो है मगर अंतिम रूप से होगा, अभी नहीं कहा जा सकता, मगर जो है उस पर बात हो सकती है. 9 नवंबर को द हिन्दू अख़बार में मीरा नांगिया ने इस पर विस्तार से लेख लिखा तो कई लोगों के मन में यह आशंका उठी कि क्या वाकई ऐसा हो सकता है कि बैंक हमारे पैसे को लौटाने से इनकार कर सकते हैं. इसके बाद 3 दिसंबर को स्क्रोल पर श्रुति सागर ने इस पर लिखा और फिर धीरे-धीरे कई जगहों पर यह ख़बर छपने लगी. नए प्रावधानों में कहा गया है कि खाताधारकों के जमा पैसे का इस्तेमाल बैंक को उबारने में किया जा सकता है. डिपोजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉर्पोरेशन भी खत्म किया जाना है. जिसके तहत खाताधारकों को 1 लाख रुपये तक लौटानी की गारंटी मिली है.
अभी तक कानून है कि आपके खाते में अगर दस लाख जमा है, बैंक डूब गया तो सिर्फ एक लाख तक मिलेगा. नौ लाख रुपया समझिए डूब गया. इसकी जगह बैंकों को छूट दी जाएगी कि वो आपका पैसा लौटाएंगे या नहीं. अगर लौटाएंगे तो किस रूप में. कहीं लंबे समय के लिए निवेश कर दिया तो आप गए काम से. बैंकों का एनपीए बढ़कर 6 लाख करोड़ से बढ़ गया है. बैंकों के लिए यह बुरी ख़बर तो होती ही है, आपके लिए भी है क्योंकि बैंक डूबेंगे तो आपका पैसा भी डूबेगा. नए प्रावधान के अनुसार डूबते बैंकों से कहा जाएगा कि आप ख़ुद ही बचा लो, खाताधारक को पैसा मत दो. विवाद बिल के चैप्टर 4 सेक्शन 2 को लेकर भी है. इसके मुताबिक रेज़ोल्यूशन कॉरपोरेशन रेग्यूलेटर से सलाह-मश्विरे के बाद ये तय करेगा कि फाइनेन्शियल रेज़्यूलेशन एंड डिपोज़िट इंन्श्योरेंस बिल. दिवालिया बैंक के जमाकर्ता को उसके जमा पैसे के बदले कितनी रकम दी जाए. वो तय करेगा कि जमाकर्ता को कोई खास रकम मिले या फिर खाते में जमा पूरा पैसा.
जून 2017 में स्टेट बैंक का नॉन परफॉर्मिंग असेट एनपीए बढ़कर 1,88,069 करोड़ हो गया है. स्टेट बैंक की तरह ही पांच अन्य सरकारी बैंक हैं जिनका एनपीए इतना बढ़ गया है कि भारतीय रिज़र्व बैंक ने उन्हें तत्काल कुछ करने की चेतावनी दी है. सरकारी रिपोर्ट बताती है कि आम भारतीय का 63 फीसदी पैसा सार्वजनिकि क्षेत्र के बैंकों में जमा है, 18 फीसदी ही निजी बैंकों में जमा है. अगर ये सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक डूबे तो बड़ी संख्या में कस्टमर प्रभावित हो जाएंगे. मीरा नांगिया ने लिखा है कि बेल-इन नाम से एक प्रावधान आ रहा है जो प्रस्तावित रेजोलुशन कॉरपोरेशन को अधिकार देगा कि वह बैंकों की लायबिलिटी को रद्द कर दे यानी या बैंक लंबे समय तक के लिए निवेश कर दे, आपको दे ही न. जो पैसा आप बैंकों में फिक्स डिपोज़िट या आम डिपोज़िट जमा करते हैं उसे लायबिलिटी कहते हैं. बैंक आपसे वादा करता है कि आप जब पैसा मांगेंगे तब वह लौटा देगा. अब इस बेल इन के आने के बाद कहा जा रहा है कि बैंक आपको पैसा देने से मना कर सकते हैं. हो सकता है कि बदले में आपको कुछ शेयर दे दें, कोई सिक्योरिटी दे दें. हमारे सहयोगी सुशील महापात्रा ने मीरा नांगिया से बात की है.
दिल्ली यूनिवर्सिटी की कॉर्मस की एसोसिएट प्रोफेसर मीरा नांगिया ने बताया कि FRDI Bill अगर पास हुआ तो Resolution Corporation तय करेगा कि हर कस्टमर अपनी जमा पूंजी के कितने हिस्सा का बीमा करा सकेगा. एक ही बैंक में हमारे लिए अलग प्रतीशत हो सकता है आपके लिए अलग प्रतीशत हो सकता है. बैंकिंग विषयों पर हिन्दी में लिखने वाले विभाष कुमार श्रीवास्तव से भी हमने इस मसले पर और समझने का प्रयास किया.
यह तो तय है कि बेल इन प्रावधान के आने के बाद कस्टमर और बैंक के बीच का रिश्ता बदल जाएगा. कई जानकारों ने लिखा है कि बैंकों में अब आपका पैसा सुरक्षित नहीं रहेगा. या तो पैसा डूब जाएगा या फिर उस पैसे को बैंक अपनी खातिर कहीं निवेश कर देगा. जिस तरह से आप किसी कंपनी का शेयर खरीदते हैं उसी तरह से बैंकों में पैसा जमा करना हो जाएगा. यह एक बड़ा बदलाव है. बैंकिंग एसोसिएशन के लोगों ने कहा है कि वह भी इस बिल के प्रावधान से सहमत नहीं हैं.
कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और सीपीएम ने इस बिल को जनविरोधी कहा है. 28 नवंबर को कांग्रेस ने प्रेस रिलीज़ जारी किया है. कांग्रेस ने कहा है कि ज़्यादातर सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों की सेहत ख़राब है. इसका मतलब यह हुआ कि इन बैंकों में जमा आपका पैसा सुरक्षित नहीं है. अगर यह बिल पास हो गया तो समाज के कमज़ोर तबके को गहरा धक्का पहुंचेगा, बैंकों में जमा उनका पैसा डूब जाएगा. आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता राघव चड्ढा ने 7 दिसंबर को प्रेस कांफ्रेस कर यही आशंका ज़ाहिर की है.
बैंक के लिए अब bail- out दरअसल bail-in बनने जा रहा है. मतलब, पहले जब कोई बड़ा उद्योगपति किसी बैंक को लोन वापस नहीं करता था और बैंक कंगाली की कगार पर आ जाता था तो सरकार अपनी जेब से पैसे देकर उस बैंक की मदद करती थी जिसे बेल-आउट पैकेज भी कहते हैं. लेकिन अब इस कानून के ज़रिए बेल-इन सिस्टम बना दिया जाएगा यानी देश के आम लोगों का पैसा जो उनके बैंक खातों में जमा है, उसे बैंक हड़प लेगा और उद्योगपतियों का लोन माफ़ करते हुए अपने नुकसान की भरपाई कर लेगा. और ये सबकुछ आपकी मर्ज़ी के बिना किया जाएगा.
इस क्रम में साइप्रस में हुए एक प्रयोग का भी उदाहरण दिया जा रहा है. मगर वहां ऐसा प्रयोग सफल नहीं रहा था. इस कानून के आने के बाद वहां के आम लोगों का पैसा बैंकों ने हड़प लिया.
इन आलोचनाओं के बाद सरकार ने कहा है कि सरकार कस्टमर के पैसे की सुरक्षा को लेकर प्रतिबद्ध है. तत्कालिक वित्त मंत्री अरुण जेटली ने ट्वीट किया था कि फाइनेन्शियल रेज़्यूलेशन एंड डिपोज़िट इंन्श्योरेंस बिल संसद की स्थायी समिति के अधीन है. सरकार की मंशा वित्तीय संस्थानों और खाताधारकों के हितों को सुरक्षित रखना है. यही नहीं वित्त मंत्रालय की तरफ से एक सफाई भी आई है. जिसमें कहा गया है कि मीडिया में बिल में बेल-इन के प्रावधानों को लेकर गलतफहमी फैलाई जा रही है. संसद में जो बिल पेश किया गया है उससे खाताधारकों की मौजूदा सुरक्षा में कोई बदलाव नहीं किया गया है. बिल में पार्दर्शी तरीके से खाताधारकों के लिए सुरक्षा के नए प्रावधान शामिल किये गए हैं. देखते हैं संसदीय समिति इस मामले में क्या रिपोर्ट देती है.